आज फ़िर देखा बचपन
चाय के ढाबे पर प्याले सा टूटता हुआ
तंदूर में डली चपाती सा जलता
ठेले पर कुल्फी सा पिघलता
स्लेट पत्थर सा निरंतर टूटता फुटता घिसता हुआ,
तुझे इस हाल में देखकर भी कितेनो ने अनदेखा किया
क्योंकि
बचपन 'तुम मतदाता नहीं हो '!!!!!!!
Wednesday, December 17, 2008
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bahut khoob...
ReplyDeletedil cheer ke rakh diya
वाह वाह संधु सहब मैं तो गया। बचपन तुम मतदाता नहीं हो
ReplyDeleteबहुत सुंदर...आपके इस सुंदर से चिटठे के साथ आपका ब्लाग जगत में स्वागत है.....आशा है , आप अपनी प्रतिभा से हिन्दी चिटठा जगत को समृद्ध करने और हिन्दी पाठको को ज्ञान बांटने के साथ साथ खुद भी सफलता प्राप्त करेंगे .....हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं।
ReplyDeletebahut sundar likha hai...likhna jaari rakhe....
ReplyDeleteswaagatam . ye word verification hataa ne kaa kasht karen .
ReplyDeleteबहुत बढि़या संधू साहब, इसी तरह लिखते रहीए... आपका मेरे ब्लॉग पर भी स्वागत हैं... http://rajendras.mywebdunia.com, http://rajendrask.blogspot.com
ReplyDeleteसंधू जी
ReplyDeleteबहुत खूब लिखा है
सटीक कविता है, सही चित्रण है अपने समाज का
सही कहा. शायद तभी बचपन किसी की प्राथमिकता सूची में नहीं है. स्वागत मेरे ब्लॉग पर भी.
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