Wednesday, December 17, 2008

मतदाता

आज फ़िर देखा बचपन
चाय के ढाबे पर प्याले सा टूटता हुआ
तंदूर में डली चपाती सा जलता
ठेले पर कुल्फी सा पिघलता
स्लेट पत्थर सा निरंतर टूटता फुटता घिसता हुआ,
तुझे इस हाल में देखकर भी कितेनो ने अनदेखा किया
क्योंकि
बचपन 'तुम मतदाता नहीं हो '!!!!!!!

8 comments:

  1. वाह वाह संधु सहब मैं तो गया। बचपन तुम मतदाता नहीं हो

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  2. बहुत सुंदर...आपके इस सुंदर से चिटठे के साथ आपका ब्‍लाग जगत में स्‍वागत है.....आशा है , आप अपनी प्रतिभा से हिन्‍दी चिटठा जगत को समृद्ध करने और हिन्‍दी पाठको को ज्ञान बांटने के साथ साथ खुद भी सफलता प्राप्‍त करेंगे .....हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं।

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  3. bahut sundar likha hai...likhna jaari rakhe....

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  4. बहुत बढि़या संधू साहब, इसी तरह लिखते रहीए... आपका मेरे ब्लॉग पर भी स्वागत हैं... http://rajendras.mywebdunia.com, http://rajendrask.blogspot.com

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  5. संधू जी

    बहुत खूब लिखा है
    सटीक कविता है, सही चित्रण है अपने समाज का

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  6. सही कहा. शायद तभी बचपन किसी की प्राथमिकता सूची में नहीं है. स्वागत मेरे ब्लॉग पर भी.

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