Thursday, December 18, 2008

नींव

यारा तुम्हारी याद में
दिन वर्ष लग रहे
चान्दिनी के साथ को
सितारे मचल रहे

सूखे की इस मार में
खेत वीरान हो रहे
स्वाति की ब़स तलाश में
बन पपीहा रो रहे

इतने बड़े जहान में
तेरे इस प्यार के लिए
धूल में खोई सुई से
हम ढूँढ ते रहे

जब जब भी उसरी मंजिले इंसाफ के लिए
पत्थर भी उस नीव में
"संधु" हम ही बनें रहे

4 comments:

  1. आपका चिटठा जगत में स्वागत है निरंतरता की चाहत है अत्यन्त भावभीनी कविता
    मेरे ब्लॉग पर भी पधारें

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  2. इतने बड़े जहान में
    तेरे इस प्यार के लिए
    धूल में खोई सी

    वाह संधु साहब लिखते रहें

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  3. वाह संधु साह्ब वाह अच्छा लिख रहे हैं आप

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  4. bahut bhav bharee rachna hai badhaaii
    नव वर्ष में वंदन नया ,
    उल्लास नव आशा नई |
    हो भोर नव आभा नई,
    रवि तेज नव ऊर्जा नई |
    विश्वास नव उत्साह नव,
    नव चेतना उमंग नई |
    विस्मृत जो बीती बात है ,
    संकल्प नव परनती नई |
    है भावना परिद्रश्य बदले ,
    अनुभूति नव हो सुखमई |

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