यारा तुम्हारी याद में
दिन वर्ष लग रहे
चान्दिनी के साथ को
सितारे मचल रहे
सूखे की इस मार में
खेत वीरान हो रहे
स्वाति की ब़स तलाश में
बन पपीहा रो रहे
इतने बड़े जहान में
तेरे इस प्यार के लिए
धूल में खोई सुई से
हम ढूँढ ते रहे
जब जब भी उसरी मंजिले इंसाफ के लिए
पत्थर भी उस नीव में
"संधु" हम ही बनें रहे
Thursday, December 18, 2008
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आपका चिटठा जगत में स्वागत है निरंतरता की चाहत है अत्यन्त भावभीनी कविता
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर भी पधारें
इतने बड़े जहान में
ReplyDeleteतेरे इस प्यार के लिए
धूल में खोई सी
वाह संधु साहब लिखते रहें
वाह संधु साह्ब वाह अच्छा लिख रहे हैं आप
ReplyDeletebahut bhav bharee rachna hai badhaaii
ReplyDeleteनव वर्ष में वंदन नया ,
उल्लास नव आशा नई |
हो भोर नव आभा नई,
रवि तेज नव ऊर्जा नई |
विश्वास नव उत्साह नव,
नव चेतना उमंग नई |
विस्मृत जो बीती बात है ,
संकल्प नव परनती नई |
है भावना परिद्रश्य बदले ,
अनुभूति नव हो सुखमई |